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दिल से भरें
उड़ान
चाहतों की
तो पर्वतों को चीर
रंगीनियों में
छू लेगें आकाश।
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जीना चाहती हूँ
पीछे मुड़कर
देखना तो नहीं चाहती
जीना चाहती हूँ
बस अपने वर्तमान में।
संजोना चाहती हूँ
अपनी चाहतें
अपने-आपमें।
किन्तु कहाँ छूटती है
परछाईयाँ, यादें और बातें।
उलझ जाती हूँ
स्मृतियों के जंजाल में।
बढ़ते कदम
रुकने लगते हैं
आँखें नम होने लगती हैं
यादों का घेरा
चक्रव्यूह बनने लगता है।
पर जानती हूँ
कुछ नया पाने के लिए
कुछ पुराना छोड़ना पड़ता है,
अपनी ही पुरानी तस्वीर को
दिल से उतारना पड़ता है,
लिखे पन्नों को फ़ाड़ना पड़़ता है,
उपलब्धियों के लिए ही नहीं
नाकामियों के लिए भी
तैयार रहना पड़ता है।
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चिराग जलायें बैठे हैं
घनघोर अंधेरे में
जुगनुओं को जूझते देखा।
गहरे सागर में
दीपक को राह ढूंढते
तिरते देखा।
गहन अंधेरी रातों में
चांद-तारे भी
भटकते देखे मैंने,
रातों की आहट से
सूरज को भी डूबते देखा।
और हमारी
हिम्मत देखो
चिराग जलायें बैठे हैं
चलो, राह दिखाएं तुमको।
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हाथ जब भरोसे के जुड़ते हैं
हाथ
जब भरोसे के
जुड़ते हैं
तब धरा, आकाश
जल-थल
सब साथ देते हैं
परछाईयाँ भी
संग-संग चलती हैं
जल किलोल करता है
कदम थिरकने लगते हैं
सूरज राह दिखाता है
जीवन रंगीनियों से
सराबोर हो जाता है,
नितान्त निस्पृह
अपने-आप में खो जाता है।
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सावन की बातें मनभावन की बातें
वो सावन की बातें, वो मनभावन की बातें, छूट गईं।
वो सावन की यादें, वो प्रेम-प्यार की बातें, भूल गईं।
मन डरता है, बरसेगा या होगा महाप्रलय कौन जाने,
वो रिमझिम की यादें, वो मिलने की बातें, छूट गईं ।
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ठहरी-ठहरी-सी है ज़िन्दगी
सपनों से हम डरने लगे हैं।
दिल में भ्रम पलने लगे हैं ।
ठहरी-ठहरी-सी है ज़िन्दगी
अपने ही अब खलने लगे हैं।
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अधिकार और कर्तव्य
अधिकार यूं ही नहीं मिल जाते,कुछ कर्त्तव्य निभाने पड़ते हैं
मार्ग सदैव समतल नहीं होते,कुछ तो अवरोध हटाने पड़ते हैं
लक्ष्य तक पहुंचना सरल नहीं,पर इतना कठिन भी नहीं होता
बस कर्त्तव्य और अधिकार में कुछ संतुलन बनाने पड़ते हैं
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मन के भाव देख प्रेयसी
रंग रूप की ऐसी तैसी
मन के भाव देख प्रेयसी
लीपा-पोती जितनी कर ले
दर्पण बोले दिखती कैसी
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बस एक हिम्मत की चाह
जीवन बोझ-सा
समस्याएं नाग-सी
तब चाहिए
तुम्हारा साथ
हाथ पकड़ा है
मैं तुम्हें समस्याओं से बचाउं
तुम मेरे साथ
तो जीवन भी बोझ-सा नहीं
बस एक हिम्मत की चाह
होंगे हम साथ-साथ
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देखो किसके कितने ठाठ
एक-दो-तीन-चार
पांच-छः-सात-आठ
देखो किसके कितने ठाठ
इसको रोटी, उसको दूध
किसी को पानी
किसी को भूख
किसकी कितनी हिम्मत
देखें आज
देखो तुम सब
हमरे ठाठ
किके्रट टीम तो बनी नहीं
किस खेल में होते आठ
अपनी टीम बनाएंगे
मौज खूब उड़ायेंगे
सस्ते में सब निपटायेंगे
पढ़ना-लिखना हुआ है मंहगा
बना ले घर में ही टीम
पढ़ोगे-लिखोगे होंगे खराब
खेलोगे-कूदोगे बनोगे नवाब
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कैसा है ये अद्भुत दरबार
आर-पार मेरी सरकार।
दे दे दो वोट मेरे यार।
कौन है सच्चा, कौन है झूठा,
बस इनकी जीत, हमारी हार।
इसको छोड़ें उसको पकड़ें,
इसको पकड़ें, उसको छोड़ें,
करें यही हम बारम्बार।
कौन है मंत्री, कौन है सन्तरी,
कैसे समझें हम हर बार।
वोट दिया था किसी को हमने,
सत्ता पर बैठा कोई और।
इस उलट-फेर को
कोई तो समझाओ यार।
कहां पहचान है
किसका सिर और किसका द्वार,
दांत मेरे उखड़ रहे]
टोपी तेरी सरक रही]
कैसा है ये अद्भुत दरबार।
हम गिनते हैं सिक्के,
भूखे मरते हैं लाचार।
कोरोना में झूलें हम,
बाढ़ों में डूबे हम।
करोड़ों में ये बिक रहे,
हम फिर भी वोटों में है सिक रहे।
सारा दिन किसी चलचित्र-सा
इनका मजमा चल रहा
हाथ पर हाथ धरे बैठे हम लाचार।
अपना सिर फोड़ सकें,
लाओ ऐसी कोई दीवार।