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सुना है
आशाओं के
दीप जलते हैं।
शायद
इसी कारण
बहुत छोटी होती है
आशाओं की आयु।
और
इसी कारण
हम
रोज़-हर-रोज़
नया दीप प्रज्वलित करते हैं
आशाओं के दीप
कभी बुझने नहीं देते।
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अपने ही घर को लूटने से
कुछ रोशनियां अंधेरे की आहट से ग्रस्त हुआ करती हैं
जलते घरों की आग पर कभी भी रोटियां नहीं सिकती हैं
अंधेरे में हम पहचान नहीं पाते हैं अपने ही घर का द्वार
अपने ही घर को लूटने से तिज़ोरियां नहीं भरती हैं।
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झूठी-सच्ची ख़बरें बुनते
नाम नहीं, पहचान नहीं, करने दो मुझको काम।
क्यों मेरी फ़ोटो खींच रहे, मिलते हैं कितने दाम।
कहीं की बात कहीं करें और झूठी-सच्ची ख़बरें बुनते
समझो तुम, मिल-जुलकर चलता है घर का काम।
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मुझे तो हर औरत दिखाई देती है
तुम सीता हो या सावित्री
द्रौपदी हो या कुंती
अहिल्या हो या राधा-रूक्मिणी
मैं अक्सर पहचान ही नहीं पाती।
सम्भव है होलिका, अहिल्या,
गांधारी, कुंती, उर्मिला,
अम्बा-अम्बालिका हो।
या नीता, गीता
सुशीला, रमा, शमा कोई भी हो।
और भी बहुत से नाम
स्मरण आ रहे हैं मुझे
किन्तु मैं स्वयं भी
किसी असमंजस में नहीं
पड़ना चाहती,
और न ही चाहती हूं
कि तुम सोचने लगो,
कि इसकी तो बातें
सदैव ही अटपटी-होती हैं
उलझी-उलझी।
तुम्हें क्या लगता है
कौन है यह?
सती-सावित्री?
मुझे तो हर औरत
दिखाई देती है इसके भीतर
सदैव पति के लिए
दुआएं मांगती,
यमराज के आगे सिर झुकाकर
अपनी जीवन देकर ।
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क्या होगा वक्त के उस पार
वक्त के इस पार ज़िन्दगी है,
खुशियां हैं वक्त के इस पार।
दुख-सुख हैं, आंसू, हंसी है,
आवागमन है वक्त के इस पार।
कल किसने देखा है,
कौन जाने क्या होगा,
क्यों सोच में डूबे,
आज को जी लेते हैं,
क्यों डरें,
क्या होगा वक्त के उस पार।
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संसार है घर-द्वार
अपनेपन, सम्बन्धों का आधार है घर-द्वार
रिश्तों का, विश्वास का संसार है घर-द्वार
जीवन बीत जाता है संवारने-सजाने में
सुख-दुख के सामंजस्य का आधार है घर-द्वार
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तिरंगे का एहसास
जब हम दोनों
साथ खड़े होते हैं
तब
तिरंगे का
एहसास होता है।
केसरिया
सफ़ेद और हरा
मानों
साथ-साथ चलते हैं
बाहों में बाहें डाले।
चलो, यूँ ही
आगे बढ़ते हैं
अपने इस मैत्री-भाव को
अमर करते हैं।
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बेनाम वीरों को नमन करूं
किस-किस का नाम लूं
किसी-किस को छोड़ दूं
कहां तक गिनूं,
किसे न नमन करूं
सैंकड़ों नहीं लाखों हैं वे
देश के लिए मर मिटे
इन बेनाम वीरों को
क्यों न नमन करूं।
कोई घर बैठे कर्म कर रहा था
तो कोई राहों में अड़ा था
किसी के हाथ में बन्दूक थी
तो कोई सबके आगे
प्रेरणा-स्रोत बन खड़ा था।
कोई कलम का सिपाही था
तो कोई राजनीति में पड़ा था।
कुछ को नाम मिला
और कुछ बेनाम ही
मर मिटे थे
सालों-साल कारागृह में पड़े रहे,
लाखों-लाखों की एक भीड़ थी
एक ध्वज के मान में
देश की शान में
मर मिटी थी
इसी बेनाम को नमन करूं
इसी बेनाम को स्मरण करूं।
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आत्मस्वीकृति
कौन कहता है
कि हमें ईमानदारी से जीना नहीं आता
अभी तो जीना सीखा है हमने।
दुकानदार जब सब्जी तोलता है
तो दो चार मटर, एक दो टमाटर
और कुछ छोटी मोटी
हरी पत्तियां तो चखी ही जा सकती हैं।
वैसे भी तो वह ज्यादा भाव बताकर
हमें लूट ही रहा था।
राशन की दुकान पर
और कुछ नहीं तो
चीनी तो मीठी ही है।
फिर फल वाले का यह कर्त्तव्य है
कि जब तक हम
फलों को जांचे परखें, मोल भाव करें
वह साथ आये बच्चे को
दो चार दाने अंगूर के तो दे।
और फल चखकर ही तो पता लगेगा
कि सामान लेने लायक है या नहीं
और बाज़ार से मंहगा है।
किसे फ़ुर्सत है देखने की
कि सिग्रेट जलाती समय
दुकानदार की माचिस ने
जेब में जगह बना ली है।
और अगर बर्तनों की दुकान पर
एक दो चम्मच या गिलास
टोकरी में गिर गये हैं
तो इन छोटी छोटी चीज़ों में
क्या रखा है
इन्हें महत्व मत दो
इन छोटी छोटी वारदातों को
चोरी नहीं ज़रूरत कहते हैं
ये तो ऐसे ही चलता है।
कौन परवाह करता है
कि दफ्तर के कितने पैन, कागज़ और रजिस्टर
घर की शोभा बढ़ा रहे हैं
बच्चे उनसे तितलियां बना रहे हैं
हवाई जहाज़ उड़ा रहे हैं
और उन कागज़ों पर
काले चोर की तस्वीर बनाकर
तुम्हें ही डरा रहे हैं।
लेकिन तुम क्यों डरते हो ?
कौन पहचानता है इस तस्वीर को
क्योंकि हम सभी का चेहरा
किसी न किसी कोण से
इस तस्वीर के पीछे छिपा है
यह और बात है कि
मुझे तुम्हारा और तुम्हें मेरा दिखा है।
इसलिए बेहतर है दोस्त
हाथ मिला लें
और इस चित्र को
बच्चे की हरकत कह कर जला दें।
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मनोरम प्रकृति का यह रूप
कितना मनोरम दिखता है
प्रकृति का यह रूप।
मानों मेरे मन के
सारे भाव चुराकर
पसर गई है
यहां अनेक रूपों में।
कभी हृदय
पाषाण-सा हो जाता है
कभी भाव
तरल-तरल बहकते हैं।
लहरें मानों
कसमसाती हैं
बहकती हैं
किनारों से टकराती हैं
और लौटकर
मानों
मन मसोसकर रह जाती हैं।
जल अपनी तरलता से
प्रयासरत रहता है
धीरे-धीरे
पाषाणों को आकार देने के लिए।
हरी दूब की कोमलता में
पाषाण कटु भावों-से
नेह-से पिघलने लगते हैं
एक छाया मानों सान्त्वना
के भाव देती है
और मन हर्षित हो उठता है।
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ज़िन्दगी की लम्बी राहों पर
मुस्कुराने की भी
अपनी एक अदा होती है
ज़िन्दगी बिताने की भी
अपनी एक अदा होती है।
ज़िन्दगी की इन लम्बी राहों पर
चलते चलते
फूलों संग मुस्कुराने की भी
अपनी एक अदा होती है।
बरसात की मार हो या
सूखे की धार
ज़िन्दगी को मनाने की भी
अपनी एक अदा होती है।
ठहर गये अगर
तो चुक जायेंगे
चलते रहने की भी
अपनी एक अदा होती है।
खड़े हैं आपकी प्रतीक्षा में,
चले आओ हमारे साथ,
ज़िन्दगी में संग संग
दूर-दूर तक
चलने की भी
अपनी एक अदा होती है।