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उस दिन मैंने
एक सुन्दर सी कली देखी।
उसमें जीवन था और ललक थी।
आशा थी,
और जिन्दगी का उल्लास,
यौवन से भरपूर,
पर अद्भुत आश्चर्य,
कि उसके आस पास
कितने ही लोग थे,
जो उसे देख रहे थे।
उनके हाथ लम्बे,
और कद उंचे।
और वह कली,
फिर भी डाली पर
सुरक्षित थी।
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कुछ तो मुंह भी खोल
बस !
अब बहुत हुआ।
केवल आंखों से न बोल।
कुछ तो मुंह भी खोल।
कोई बोले कजरारे नयना
कोई बोले मतवारे नयना।
कोई बोले अबला बेचारी,
किसी को दिखती सबला है।
तेरे बारे में,
तेरी बातें सब करते।
अवगुण्ठन के पीछे
कोई तेरा रूप निहारे
कोई प्रेम-प्याला पी रहे ।
किसी को
आंखों से उतरा पानी दिखता
कोई तेरी इन सुरमयी आंखों के
नशेमन में जी रहे।
कोई मर्यादा ढूंढ रहा
कोई तेरे सपने बुन रहा,
किसी-किसी को
तेरी आबरू लुटती दिखती
किसी को तू बस
सिसकती-सिसकती दिखती।
जिसका जो मन चाहे
बोले जाये।
पर तू क्या है
बस अपने मन से बोल।
बस ! अब बहुत हुआ।
केवल आंखों से न बोल।
कुछ तो मुंह भी खोल।
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प्यार का नाता
एक प्यार का नाता है, विश्वास का नाता है
भाई-बहन से मान करता, अपनापन भाता है
दूर रहकर भी नज़दीकियाँ यूँ बनी रहें सदा
जब याद आती है, आँख में पानी भर आता है
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जीवन की आपा-धापी में
सालों बाद, बस यूँ ही
पुस्तकों की आलमारी
खोल बैठी।
पन्ना-पन्ना मेरे हाथ आया,
घबराकर मैंने हाथ बढ़ाया,
बहुत प्रयास किया मैंने
पर बिखरे पन्नों को
नहीं समेट पाई,
देखा,
पुस्तकों के नाम बदल गये
आकार बदल गये
भाव बदल गये।
जीवन की आपा-धापी में
संवाद बदल गये।
प्रारम्भ और अन्त
उलझ गये।
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चलते चलते
चलते चलते
सड़क पर पड़े
एक छोटे से कंकड़ को
यूं ही उछाल दिया मैंने।
पल भर में न जाने
कहां खो गया।
सोच कुछ और रही थी
कह कुछ और बैठी।
बातों के, घातों के, वादों के
आघातों के
छोटे-छोटे कंकड़
हम, यूं ही उछालते रहते हैं
कब, किसे, कैसे चोट दे जाता है
नहीं जानते।
किन्तु जब अपने पर पड़ती है
तब..................
मेरे भीतर
एक विशालकाय पर्वत है
ऐसे छोटे-छोटे कंकड़ों का।
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मेंहदी के रंगों की तरह
जीवन के रंग भी अद्भुत हैं।
हरी मेंहदी
लाल रंग छोड़ जाती है।
ढलते-ढलते गुलाबी होकर
मिट जाती है
लेकिन अक्सर
हाथों के किसी कोने में
कुछ निशान छोड़ जाती है
जो देर तक बने रहते हैं
स्मृतियों के घेरे में
यादों के, रिश्तों के,
सम्बन्धों के,
अपने-परायों के
प्रेम-प्यार के
जो उम्र के साथ
ढलते हैं, बदलते हैं
और अन्त में
कितने तो मिट जाते हैं
मेंहदी के रंगों की तरह।
जैसे हम नहीं जानते
जीवन में
कब हरीतिमा होगी,
कब पतझड़-सा पीलापन
और कब छायेगी फूलों की लाली।
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अटल बिहारी वाजपेयी के प्रति
हिन्दी को वे नाम दे गये, हिन्दी को पहचान दे गये ।
अटल वाणी से वे जग में अपनी अलग पहचान दे गये।
शत्रु से हाथ मिलाकर भी ताकत अपनी दिखलाई थी ,
विश्व-पटल पर अपनी वाणी से भारत को पहचान दे गये।
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चाहतों की भूख
जीवन में आगे-पीछे, ऊपर-नीचे तो चलता रहता है
जो पाया, अनायास न जाने कभी कहाँ खो जाता है
बहुत-बहुत की चाह में धक्का-मुक्की में लगे हैं हम
चाहतों की भूख से मानव कहाँ कभी पार पा पाता है।
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हमारा बायोडेटा
हम कविता लिखते हैं।
कविता को गज़ल, गज़ल को गीत, गीत को नवगीत, नवगीत को मुक्त छन्द, मुक्त छन्द को मुक्तक,
मुक्तक को चतुष्पदी बनाना जानते हैं और ज़रूरत पड़े तो इन सब को गद्य की सभी विधाओं में भी
परिवर्तित करना जानते हैं।
जैसे कृष्ण ने गीता में लिखा है कि वे ही सब कुछ हैं, वैसे ही मैं ही लेखक हूँ ,
मैं ही कवि, गीतकार, गज़लकार, साहित्यकार, गद्य पद्य की रचयिता,
कहानी लेखक, प्रकाशक , मुद्रक, विक्रेता, क्रेता, आलोचक,
समीक्षक भी मैं ही हूँ ,मैं ही संचालक हूँ , मैं ही प्रशासक हूँ ।
अहं सर्वत्र रचयिते
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