Share Me
पन्नों पर लिखी हैं मन की वे सारी गाथाएं
जो दुनिया तो जाने थी पर मन था छुपाए
पर इन फूलों के अन्तस में हैं वे सारी बातें
न कभी हम उन्हें बताएं न वो हमें जताएं
Share Me
Write a comment
More Articles
जीवन संवर-संवर जाता है
बादलों की ओट से
निरखता है सूरज।
बदलियों को
रँगों से भरता
ताक-झाँक
करता है सूरज।
सूरज से रँग बरसें
हाथों में थामकर
जीवन को रंगीन बनायें।
लहरें रंग-बिरँगी
मानों कोई स्वर-लहरी
जीवन-संगीत संवार लें।
जब मिलकर हाथ बंधते हैं
तब आकाश
हाथों में ठहर-ठहर जाता है।
अंधेरे से निपटते हैं
जीवन संवर-संवर जाता है।
Share Me
मेरी कागज़ की नाव खो गई
कागज़ की नाव में
जितने सपने थे
सब अपने थे।
छोटे-छोटे थे
पर मन के थे ।
न डूबने की चिन्ता
न सपनों के टूटने की चिन्ता।
तिरती थी,
पलटती थी,
टूट-फूट जाती थी,
भंवर में अटकती थी,
रूक-रूक जाती थी,
एक जाती थी,
एक और आ जाती थी।
पर सपने तो सपने थे
सब अपने थे]
न टूटते थे न फूटते थे,
जीवन की लय
यूं ही बहती जाती थी।
फिर एक दिन
हम बड़े हो गये
सपने भारी-भारी हो गये।
अपने ही नहीं
सबके हो गये।
पता ही नहीं लगा
वह कागज़ की नाव
कहां खो गई।
कभी अनायास यूं ही
याद आ जाती है
तो ढूंढने निकल पड़ते हैं,
किन्तु भारी सपने कहां
पीछा छोड़ते हैं।
सपने सिर पर लादे घूम रहे हैं,
अब नाव नहीं बनती।
मेरी कागज़ की नाव
न जाने कहां खो गई
मिल जाये तो लौटा देना।
Share Me
कौन हैं अपने कौन पराये
कुछ मुखौटै चढ़े हैं, कुछ नकली बने हैं
किसे अपना मानें, कौन पराये बने हैं
मीठी-मीठी बातों पर मत जाना यारो
मानों खेत में खड़े बिजूका से सजे हैं
Share Me
अपने आप को खोजती हूं
अपने आप को खोजती हूं
अपनी ही प्रतिच्छाया में।
यह एकान्त मेरा है
और मैं भी
बस अपनी हूं
कोई नहीं है
मेरे और मेरे स्व के बीच।
यह अगाध जलराशि
मेरे भीतर भी है
जिसकी तरंगे मेरा जीवन हैं
जिसकी हलचल मेरी प्रेरणा है
जिसकी भंवर मेरा संघर्ष है
और मैं हूं और
और है मेरी प्रतिच्छाया
मेरी प्रेरणा
सी मेरी भावनाएं
अपने ही साथ बांटती हूं
Share Me
मैं और मेरी बिल्लो रानी
छुप्पा छुप्पी खेल रहे थे
कहां गये सब साथी
हम यहां बैठे रह गये
किसने मारी भांजी
शाम ढली सब घर भागे
तू मत डर बिल्लो रानी
मेरे पीछे आजा
मैं हूं आगे आगे
दूध मलाई रोटी दूंगी
मां मंदिर तो जा ले।
Share Me
ठिठुरी ठिठुरी धूप है कुहासे से है लड़ रही
ठिठुरी ठिठुरी धूप है, कुहासे से है लड़ रही
भाव भी हैं सो रहे, कलम हाथ से खिसक रही
दिन-रात का भाव एकमेक हो रहा यहां देखो
कौन करे अब काम, इस बात पर चर्चा हो रही
Share Me
राख पर किसी का नाम नहीं होता
युद्ध की विभीषिका
देश, शहर
दुनिया या इंसान नहीं पूछती
बस पीढ़ियों को
बरबादी की राह दिखाती है।
हम समझते हैं
कि हमने सामने वाले को
बरबाद कर दिया
किन्तु युद्ध में
इंसान मारने से
पहले भी मरता है
और मारने के बाद भी।
बच्चों की किलकारियाँ
कब रुदन में बदल जाती हैं
अपनों को अपनों से दूर ले जाती हैं
हम समझ ही नहीं पाते।
और जब तक समझ आता है
तब तक
इंसानियत
राख के ढेर में बदल चुकी होती है
किन्तु हम पहचान नहीं पाते
कि यह राख हमारी है
या किसी और की।
Share Me
अकारण क्यों हारें
राहों में आते हैं कंकड़-पत्थर, मार ठोकर कर किनारे।
न डर किसी से, बोल दे सबको, मेरी मर्ज़ी, हटो सारे।
जो मन चाहेगा, करें हम, कौन, क्यों रोके हमें यहां।
कर्म का पथ कभी छोड़ा नहीं, फिर अकारण क्यों हारें।
Share Me
बहुत किरकिरी होती है
अनुभव की बात कहती हूं
अनधिकार को
कभी मान मत देना
जिस घट में छिद्र हो
उसमें जल संग्रहण नहीं होता
कृत्रिम पुष्पों से
सज्जित रंग-रूप देकर
भले ही कुछ दिन सहेज लें
किन्तु दरारें तो फूटेंगी ही
फिर जो मिट्टी बिखरती है
बहुत किरकिरी होती है
Share Me
कशमकश में बीतता है जीवन
सुख-दुख तो जीवन की बाती है
कभी जलती, कभी बुझती जाती है
यूँ ही कशमकश में बीतता है जीवन
मन की भटकन कहाँ सम्हल पाती है।