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दरारों से
झांकने की
यूँ आदत तो नहीं
किन्तु
कुछ सुराख
इतने महीन होते हैं
कि
अनजाने ही
दिल में
मिट्टी दरक जाती है।
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चलो, आज बेभाव अपनापन बांटते हैं
किसी की प्यास बुझा सकें तो क्या बात है।
किसी को बस यूं ही अपना बना सकें तो क्या बात है।
जब रह रह कर मन उदास होता है,
तब बिना वजह खिलखिला सकें तो क्या बात है।
चलो आज उड़ती चिड़िया के पंख गिने,
जो काम कोई न कर सकता हो,
वही आज कर लें तो क्या बात है।
चलो, आज बेभाव अपनापन बांटते हैं,
किसी अपने को सच में अपना बना सकें तो क्या बात है।
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मन की बातें न बताएं
पन्नों पर लिखी हैं मन की वे सारी गाथाएं
जो दुनिया तो जाने थी पर मन था छुपाए
पर इन फूलों के अन्तस में हैं वे सारी बातें
न कभी हम उन्हें बताएं न वो हमें जताएं
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इस जग की आपा-धापी में
उलट-पलट कर चित्र को देखो तो, डूबे हैं दोनों ही जल में
मेरी छोड़ो मैं तो डूबी, तुम उतरो ज़रा जग के प्रांगण में
इस जग की आपा-धापी में मेरे संग जीकर दिखला दो तो
गैया,मैया,दूध,दहीं,चरवाहे,माखन,भूलोगे सब पल भर में
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कुछ कह रही ओस की बूंदे
रंग-बिरंगी आभाओं से सजकर रवि हुआ उदित
चिड़ियां चहकीं, फूल खिले, पल्लव हुए मुदित
देखो भाग-भागकर कुछ कह रही ओस की बूंदे
इस मधुर भाव में मन क्यों न हो जाये प्रफुल्लित
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अपने कदम बढ़ाना
किसी के कदमों के छूटे निशान न कभी देखना
अपने कदम बढ़ाना अपनी राह आप ही देखना
शिखर तक पहुंचने के लिए बस चाहत ज़रूरी है
अपनी हिम्मत लेकर जायेगी शिखर तक देखना
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जब चाहिए वरदान तब शीश नवाएं
जब-जब चाहिए वरदान तब तब करते पूजा का विधान
दुर्गा, चण्डी, गौरी सबके आगे शीश नवाएं करते सम्मान
पर्व बीते, भूले अब सब, उठ गई चौकी, चल अब चौके में
तुलसी जी कह गये,नारी ताड़न की अधिकारी यह ले मान।।
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सेंकनी है मुझको ज़िन्दगी की रोटी।
हाथ भी जलाती हूं, पैर भी जलाती हूं
दिल भी जलाती हूं, दिमाग भी जलाती हूं
पर तवा गर्म नहीं होता।
सेंकनी है मुझको ज़िन्दगी की रोटी।
मां ने कहा, बाप ने कहा,
पति ने कहा, सास ने कहा।
सेंकनी है तुझको ज़िन्दगी की रोटी।
न आग न लपट, न धुंआ न चटक
सेंकनी है मुझको ज़िन्दगी की रोटी
मां ने कहा, बाप ने कहा,
पति ने कहा, समाज ने कहा।
सेंकनी है तुझको ज़िन्दगी की रोटी।
हाथ भी बंधे हैं, पैर भी बंधे हैं,
मुंह भी सिला है, कान भी कटे हैं।
सेंकनी है मुझको ज़िन्दगी की रोटी।
मां ने कहा, बाप ने कहा,
पति ने कहा, समाज ने कहा।
बोलना मना है, सुनना मना है,
देखना मना है, सोचना मना है,
सेंकनी है मुझको ज़िन्दगी की रोटी।
मां ने कहा, बाप ने कहा,
पति ने कहा, सास ने कहा।
भाव भी मिटाती हूं, आस भी लुटाती हूं
सपने भी बुझाती हूं, आब भी गंवाती हूं
सेंकनी है मुझको ज़िन्दगी की रोटी
आना मना है, जाना मना है,
रोना मना है, हंसना मना है।
मां ने कहा, बाप ने कहा,
पति ने कहा, सास ने कहा।
सेंकनी है मुझको ज़िन्दगी की रोटी।
हाथ भी जलाती हूं, पैर भी जलाती हूं
दिल भी जलाती हूं, दिमाग भी जलाती हूं
पर तवा गर्म नहीं होता।……………
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ईश्वर के रूप में चिकित्सक
कहते हैं
जीवन में निरोगी काया से
बड़ा कोई सुख नहीं
और रोग से बड़ा
कोई दुख नहीं।
जीवन का भी तो
कोई भरोसा नहीं
आज है कल नहीं।
किन्तु
जब जीवन है
तब रोग और मौत
दोनों के ही दुख से
कहाँ बच पाया है कोई।
किन्तु
कहते हैं
ईश्वर के रूप में
चिकित्सक आते हैं
भाग्य-लेख तो वे भी
नहीं मिटा पाते हैं
किन्तु
अपने जीवन को
दांव पर लगाकर
हमें जीने की आस,
एक विश्वास
और साहस का
डोज़ दे जाते हैं
और हम
यूँ ही मुस्कुरा जाते हैं।
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कुछ सपने कुछ अपने
कहने की ही बातें है कि बीते वर्ष अब विदा हुए
सारी यादें, सारी बातें मन ही में हैं लिए हुए
कुछ सपने, कुछ अपने, कुछ हैं, जो खो दिये
आने वाले दिन भी, मन में हैं एक नयी आस लिए
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कहां किस आस में
सूर्य की परिक्रमा के साथ साथ ही परिक्रमा करता है सूर्यमुखी
अक्सर सोचती हूं रात्रि को कहां किस आस में रहता है सूर्यमुखी
सम्भव है सिसकता हो रात भर कहां चला जाता है मेरा हमसफ़र
शायद इसीलिए प्रात में अश्रुओं से नम सुप्त मिलता है सूर्यमुखी