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Kavita Sud
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अपने बारे में क्या लिखूं। डा. रघुवीर सहाय के शब्दों में ‘‘बहुत बोलने वाली, बहुत खाने वाली, बहुत सोने वाली’’ किन्तु मेरी रचनाएं
बहुत बोलने वालीं, बहुत बोलने वालीं,
बहुत बोलने वालीं

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प्रकृति के प्रांगण में

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कविताएं मुझे अपने-आप से जोड़ती हैं, आनन्द देती हैं, आत्म-सन्तोष प्रदान करती हैं। मेरे भीतर के अनभिव्यक्त को अभिव्यक्त करने में मुझे समर्थ करती हैं,
मुझे जिजीविषा प्रदान करती हैं।

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