बजता था डमरू

कहलाते शिव भोले-भाले थे पर गरल उन्होंने पिया था

विषधर उनके आभूषण थे त्रिशूल हाथ में लिया था

भूत-प्रेत संग नरमुण्डों की माला पहने, बजता था डमरू

त्रिनेत्र खोल तीनों लोकों के दुष्टों का  संहार उन्होंने किया था