कांगड़ी बोली में छन्दमुक्त कविता

चल मनां अज्ज सिमले चलिए,

पहाड़ां दी रौनक निरखिए।

बसा‘च जाणा कि

छुक-छुक गड्डी करनी।

टेडे-फेटे मोड़़ा‘च न डरयां,

सिर खिड़किया ते बा‘र न कड्यां,

चल मनां अज्ज सिमले चलिए।

-

माल रोडे दे चक्कर कटणे

मुंडु-कुड़ियां सारे दिखणे।

भेडुआं साई फुदकदियां छोरियां,

चुक्की लैंदियां मणा दियां बोरियां।

बालज़ीस दा डोसा खादा

जे न खादे हिमानी दे छोले-भटूरे

तां सिमले दी सैर मनदे अधूरे।

रिज मदानां गांधी दा बुत

लकड़ियां दे बैंचां पर बैठी

खांदे मुंगफली खूब।

गोल चक्कर बणी गया हुण

गुफ़ा, आशियाना रैस्टोरैंट।

लक्कड़ बजारा जाणा जरूर

लकड़िया दी सोटी लैणी हजूर।

जाखू जांगें तां लई जाणी सोटी,

चड़दे-चड़दे गोडे भजदे,

बणदी सा‘रा कन्ने

बांदरां जो नठाणे‘, कम्मे औंदी।

स्कैंडल पाईंट पर खड़े लालाजी

बोलदे इक ने इक चला जी।

मौसम कोई बी होये जी

करना नीं कदी परोसा जी।

सुएटर-छतरी लई ने चलना

नईं ता सीत लई ने हटणा।

यादां बड़ियां मेरे बाॅल

पर बोलदे लिखणा 26 लाईनां‘च हाल।

 

 

हिन्दी अनुवाद

चल मन आज शिमला चलें,

पहाडों की रौनक देखें।

बस में जाना या

छुक-छुक गाड़ी करनी।

टेढ़े-मेढ़े मोड़ों से न डरना

सिर खिड़की से बाहर न निकालना

चल मन आज शिमला चलें।

 

माल रोड के चक्कर काटने

लड़के-लड़कियां सब देखने

भेड़ों की तरह फुदकती हैं लड़कियां

उठा लेती हैं मनों की बोरियां।

बालज़ीस का डोसा खाया

और यदि न खाये हिमानी के भटूरे

तो शिमले की सैर मानेंगे अधूरे।

रिज मैदान पर गांधी का बुत।

लकड़ियों के बैंचों पर बैठकर

खाई मूंगफ़ली खूब।

गोल चक्कर बन गया अब

गुफ़ा, आशियाना रैस्टोरैंट।

लक्कड़ बाज़ार जाना ज़रूर।

लकड़ी की लाठी लेना  हज़ूर।

जाखू जायेंगे तो ले जाना लाठी,

चढ़ते-चढ़ते घुटने टूटते

साथ बनती है सहारा,

बंदरों को भगाने में आती काम।

स्कैंडल प्वाईंट पर खड़े लालाजी

कहते हैं एक के साथ एक चलो जी।

मौसम कोई भी हो

करना नहीं कभी भरोसा,

स्वैटर-छाता लेकर चलना,

नहीं तो शीत लेकर हटना।

यादें बहुत हैं मेरे पास

पर कहते हैं 26 पंक्तियों में लिखना है हाल।