क्लोज़िंग डे
हर छ: महीने बाद
वर्ष में दो बार आने वाला
क्लोज़िंग डे
जब पिछले सब खाते
बन्द करने होते हैं
और शुरू करना होता है
फिर से नया हिसाब किताब।
मिलान करना होता है हर प्रविष्टि का,
अनेक तरह के समायोजन
और एक निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति।
मैंने कितनी ही बार चाहा
कि अपनी ज़िन्दगी के हर दिन को
बैंक का क्लोज़िंग डे बना दूं।
ज़िन्दगी भी तो बैंक का एक खाता ही है
पर फर्क बस इतना है कि
बैंक और बैंक के खाते
कभी तो लाभ में भी रहते हैं
ब्याज दर ब्याज कमाते हैं।
पर मेरी ज़िन्दगी तो बस
घाटे का एक उधार खाता बन कर रह गई है।
रोज़ शाम को
जब ज़िन्दगी की किताबों का
मिलान करने बैठती हूं
तो पाती हूं
कि यहां तो कुछ भी समायोजित नहीं होता।
कहीं कोई प्रविष्टि ही गायब है
तो कहीं एक के उपर एक
इतनी बार लिखा गया है कई कुछ
कि अपठनीय हो गया है सब।
फिर कहीं पृष्ट ही गायब हैं
और कहीं पर्चियां बिना हस्ताक्षर।
सब नियम विरूद्ध।
और कहीं दूर पीछे छूटते लक्ष्य।
कितना धोखा धड़ी भरा खाता है यह
कि सब नामे ही नामे है
जमा कुछ भी नहीं।
फिर खाता बन्द कर देने पर भी
उधार चुकता नहीं होता
उनका नवीनीकरण हो जाता है।
पिछला सब शेष है
और नया शुरू हो जाता है।
पिछले लक्ष्य अधूरे
नये लक्ष्यों का खौफ़।
एक एक कर खिसकते दिन।
दिन दिन से जुड़कर बनते साल।
उधार ही उधार।
कैसे चुकता होगा सब।
विचार ही विचार।
यह दिनों और सालों का हिसाब।
और उन पर लगता ब्याज।
इतिहास सदा ही लम्बा होता है
और वर्तमान छोटा।
इतिहास स्थिर होता है
और वर्तमान गतिशील।
सफ़र जारी है
उस दिन की ओर
जिस दिन
अपनी ज़िन्दगी के खातों में
कोई समायोजित प्रविष्टि,
कोई मिलान प्रविष्टि
करने में सफ़लता मिलेगी।
वही दिन
मेरी जिन्दगी का
ओपनिंग डे होगा
पर क्या कोई ऐसा भी दिन होगा ?