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कभी था समय जब जनता जागती थी साहित्य की ललकार से
आज कहां समय किसी के पास जो जुड़े किसी की पुकार से
मात्र कलम से नहीं बदलने वाली अब समाज की ये दुश्वारियां
उतरना होगा ज़मीनी सच्चाईयों पर आम आदमी की पुकार से
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मोती बनीं सुन्दर
बूँदों का सागर है या सागर में बूँदें
छल-छल-छलक रहीं मदमाती बूँदें
सीपी में बन्द हुईं मोती बनीं सुन्दर
छू लें तो मानों डरकर भाग रही बूँदें
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ज़िन्दगी के गीत
ज़िन्दगी के कदमों की तरह
बड़ा कठिन होता है
सितार के तारों को साधना।
बड़ा कठिन होता है
इनका पेंच बांधना।
यूँ तो मोतियों के सहारे
बांधी जाती हैं तारें
किन्तु ज़रा-सा
ढिलाई या कसाव
नहीं सह पातीं
जैसे प्यार में ज़िन्दगी।
मंद्र, मध्य, तार सप्तक की तरह
अलग-अलग भावों में
बहती है ज़िन्दगी।
तबले की थाप के बिना
नहीं सजते सितार के सुर
वैसे ही अपनों के साथ
उलझती है जिन्दगी
कभी भागती, कभी रुकती
कभी तानें छेड़ती,
राग गाती,
झाले-सी दनादन बजती,
लड़ती-झगड़ती
मन को आनन्द देती है ज़िन्दगी।
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निद्रा पर एक झलकी
जब खरी–खरी कह लेते हैं,नींद भली-सी आती है
ज़्यादा चिकनी-चुपड़ी ठीक नहीं,चर्बी बढ़ जाती है
हृदयाघात का डर नहीं, औरों की नींद उड़ाते हैं
हमको तो जीने की बस ऐसी ही शैली आती है
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उठ बालिके उठ बालिके
सुनसान, बियाबान-सा
सब लगता है,
मिट्टी के इस ढेर पर
क्यों बैठी हो बालिके,
कौन तुम्हारा यहाँ
कैसे पहुँची,
कौन बिठा गया।
इतनी विशाल
दीमक की बांबी
डर नहीं लगता तुम्हें।
द्वार बन्द पड़े
बीच में गहरी खाई,
सीढ़ियाँ न राह दिखातीं
उठ बालिके।
उठ बालिके,
चल घर चल
अपने कदम आप बढ़ा
अपनी बात आप उठा।
न कर किसी से आस।
कर अपने पर विश्वास।
उठ बालिके।
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अपना विकराल रूप दिखाती है ज़िन्दगी
वैकल्पिक अवसर कहां देती है ज़िन्दगी,
जब चाहे कुछ भी छीन लेती है ज़िन्दगी
भाग्य को नहीं मानती मैं, पर फिर भी
अपना विकराल रूप दिखाती है ज़िन्दगी
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सर्वगुण सम्पन्न कोई नहीं होता
जान लें हम सर्वगुण सम्पन्न तो यहां कोई नहीं होता
अच्छाई-बुराई सब साथ चले, मन यूं ही दुख में रोता
राम-रावण जीवन्त हैं यहां, किस-किस की बात करें
अन्तद्र्वन्द्व में जी रहे, नहीं जानते, कौन कहां सजग होता
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वन्दे मातरम् कहें
चलो
आज कुछ नया-सा करें
न करें दुआ-सलाम
न प्रणाम
बस, वन्दे मातरम् कहें।
देश-भक्ति के गीत गायें
पर सत्य का मार्ग भी अपनाएं।
शहीदों की याद में
स्मारक बनाएं
किन्तु उनसे मिली
धरोहर का मान बढ़ाएं।
न जाति पूछें, न धर्म बताएं
बस केवल
इंसानियत का पाठ पढ़ाएं।
झूठे जयकारों से कुछ नहीं होता
नारों-वादों कहावतों से कुछ नहीं होता
बदलना है अगर देश को
तो चलो यारो
आज अपने-आप को परखें
अपनी गद्दारी,
अपनी ईमानदारी को परखें
अपनी जेब टटोलें
पड़ी रेज़गारी को खोलें
और अलग करें
वे सारे सिक्के
जो खोटे हैं।
घर में कुछ दर्पण लगवा लें
प्रात: प्रतिदिन अपना चेहरा
भली-भांति परखें
फिर किसी और को दिखाने का साहस करें।
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चल आज गंगा स्नान कर लें
चल आज गंगा स्नान कर लें
पाप-पुण्य का लेखा कर लें
अगले-पिछले पाप धो लें
स्वर्ग-नरक से मुक्ति लें लें
*
भीड़ पड़ी है भारी देख
कूड़ा-कचरा फैला देख
अपने मन में मैला देख
लगा हुआ ये मेला देख
वी आई का रेला देख
चुनावों का आगाज़ तू देख
धर्मों का अंदाज़ तू देख
धर्मों का उपहास तू देख
नित नये बाबाओं का मेला देख
हाथी, घोड़े, उंट सवारी
उन पर बैठे बाबा भारी
मोटी-मोटी मालाएं देख
जटाओं का ;s स्टाईल तू देख
लैपटाप-मोबाईल देख
इनका नया अंदाज़ यहां
नित नई आवाज़ यहां
पण्डों-पुजारियों के पाखण्ड तू देख
नये-पुराने रिवाज़ तू देख
बाजों-गाजों संग आगाज़ तू देख।
पैसे का यहां खेला देख
अपने मन का मैला देख
चल आज गंगा स्नान कर लें
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मन की भोली-भाली हूं
डील-डौल पर जाना मत
मुझसे तुम घबराना मत
मन की भोली-भाली हूं
मुझसे तुम कतराना मत
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सूखी धरती करे पुकार
वातानुकूलित भवनों में बैठकर जल की योजनाएं बनाते हैं
खेल के मैदानों पर अपने मनोरंजन के लिए पानी बहाते हैं
बोतलों में बन्द पानी पी पीकर, सूखी धरती को तर करेंगे
सबको समान सुविधाएं मिलेंगी, सुनते हैं कुछ ऐसा कहते हैं