किस असमंजस में पड़ी है ज़िन्दगी

गत-आगत के मोह से जुड़ी है ज़िन्दगी

स्मृतियों के जोड़ पर खड़ी है ज़िन्दगी

मीठी-खट्टी जो भी हैं, हैं तो सब अपनी

जाने किस असमंजस में पड़ी है ज़िन्दगी

आई आंधी टूटे पल्लव पल भर में सब अनजाने

जीवन बीत गया बुनने में रिश्तों के ताने बाने।
दिल बहला था सबके सब हैं अपने जाने पहचाने।
पलट गए कब सारे पन्ने और मिट गए सारे लेख 
आई आंधी, टूटे पल्लव,पल भर में सब अनजाने !!

जमाना जले तो जलने दो

मौसम आशिकाना है मुहब्बत की बात करो
जमाना जले तो जलने दो इकरार से डरो
उम्र की बात करना मेरे साथ, जी जलता है
नहीं समझ आती मेरी बात तो बाबा बन के मरो

राहें जिन्दगी की खूबसरत हैं

जिन्दगी कोई शतरंज नहीं कि चाल चलकर मात हो
जिन्दगी कोई ख्वाब नहीं कि सपनों में हर बात हो
राहें जिन्दगी की खूबसरत हैं साथ साथ चलते रहें 
जिन्दगी कोई रण नहीं कि बात बात पर प्रतिघात हो


 

नदिया की धार-सी टेढ़ी-मेढ़ी बहती है ज़िन्दगी

जीवन का आनन्द है कुछ लाड़ में, कुछ तकरार में

अपनों से कभी न कोई गिला, न जीत में न हार में

नदिया की धार-सी टेढ़ी-मेढ़ी बहती है ज़िन्दगी

रूठेंगे अगर कभी तो मना ही लेंगे हम प्यार से

कहीं हम अपने को ही छलते हैं

ज़िन्दगी की गठजोड़ में अनगिनत सपने पलते हैं

कुछ देखे-अनदेखे पल जीवन-भर साथ चलते हैं

समझ नहीं पाते क्या खोया, क्या पाया, कहां गया

इस नासमझी में कहीं हम अपने को ही छलते हैं

गीत नेह के गुनगुनाएं

सम्बन्धों को संवारने के लिए बस छोटे-छोटे गठजोड़ कीजिए
कुछ हम झुकें कुछ तुम झुको, इतनी-सी पुरज़ोर कोशिश कीजिए
हाथ थामें, गीत नेह के गुनगुनाएं, मधुर तान छेड़, स्वर मिलाएं,
मिलने-मिलाने की प्रथा बना लें, चाहे जैसे भी जोड़-तोड़ कीजिए


 

जीवन के प्रश्‍नपत्र में

जीवन के प्रश्‍नपत्र में कोई प्रश्‍न वैकल्पिक नहीं होते

जीवन के प्रश्‍नपत्र के सारे प्रश्‍न कभी हल नहीं होते

किसी भाषा में क्‍या लिख डाला, अनजाने से बैठे हम

इस परीक्षा में तो नकल के भी कोई आसार नहीं होते 

 

ज़िन्दगी एक बेनाम शीर्षक

समय के साथ कथाएं इतिहास बनकर रह गईं

कुछ पढ़ी, कुछ अनपढ़ी धुंधली होती चली गईं

न अन्त मिला न आमुख रहा, अर्थ सब खो गये

बस ज़िन्दगी एक बेनाम शीर्षक बनकर रह गई

आशाओं का उगता सूरज

चिड़िया को पंख फैलाए नभ में उड़ते देखा

मुक्त गगन में आशाओं का उगता सूरज देखा

सूरज डूबेगा तो चंदा को भेजेगा राह दिखाने

तारों को दोनों के मध्य हमने विहंसते देखा

ज़िन्दगी मिली है आनन्द लीजिए

ज़िन्दगी मिली है आनन्द लीजिए, मौत की क्यों बात कीजिए

मन में कोई  भटकन हो तो आईये हमसे दो बात कीजिए

आंख खोलकर देखिए पग-पग पर खुशियां बिखरी पड़ी हैं

आपके हिस्से की बहुत हैं यहां, बस ज़रा सम्हाल कीजिए

इंसानियत को जीत

अपने भीतर झांककर इंसानियत को जीत

कर सके तो कर अपनी हैवानियत पर जीत

क्या करेगा किसी के गुण दोष देखकर

पूजा, अर्चना, आराधना का अर्थ है बस यही

कर ऐसे  कर्म बनें सब इंसानियत के मीत

जैसा सोचो वैसा स्वाद देती है जि़न्दगी

कभी अस्त–व्यस्त सी लगे है जि़न्दगी
कभी मस्त-मस्त सी लगे है जि़न्दगी
झर-पतझड़, कण्टक-सुमन सब हैं यहां
जैसा सोचो वैसा स्वाद देती है जि़न्दगी

शब्दों की भाषा समझी न

शब्दों की भाषा समझी न

नयनों की भाषा क्या समझोगे

 

रूदन समझते हो आंसू को

मुस्कानों की भाषा क्या समझोगे

 

मौन की भाषा समझी न

मनुहार की भाषा क्या समझोगे

 

गुलदानों में रखते हो फूलों को

प्यार की भाषा क्या समझोगे

जो मिला बस उसे संवार

कहते हैं जीवन छोटा है, कठिनाईयां भी हैं और दुश्वारियां भी

किसका संग मिला, कौन साथ चला, किसने निभाई यारियां भी

आते-जाते सब हैं, पर यादों में तो कुछ ही लोग बसा करते हैं

जो मिला बस उसे संवार, फिर देख जीवन में हैं किलकारियां भी

मन के भाव देख प्रेयसी

रंग रूप की ऐसी तैसी

मन के भाव देख प्रेयसी

लीपा-पोती जितनी कर ले

दर्पण बोले दिखती कैसी

चल आगे बढ़ जि़न्‍दगी

भूल-चूक को भूलकर, चल आगे बढ़ जि़न्‍दगी

अच्‍छा-बुरा सब छोड़कर, चल आगे बढ़ जि़न्‍दगी

हालातों से कभी-कभी समझौता करना पड़ता है

बदले का भाव छोड़कर, चल आगे बढ़ जि़न्‍दगी

अपना ही साथ हो

उम्र के इस पड़ाव पर

अनजान सुनसान राहों पर

जब नहीं पाती हूं

किसी को अपने आस पास

तब अपनी ही प्रतिकृति तराशती हूं ।

मन का कोना कोना खोलती हूं उसके साथ।

बालपन से अब तक की

कितनी ही यादें और कितनी ही बातें

सब सांझा करती हूं इसके साथ।

लौट आता है मेरा बचपना

वह अल्हड़पन और खुशनुमा यादें

वो बेवजह की खिलखिलाहटें

वो क्लास में सोना

कंचे और गोटियां, सड़क पर बजाई सीटियां

छत की पतंग

आमपापड़ और खट्टे का स्वाद

पुरानी कापियां देकर  

चूरन और रेती खाने की उमंग

गुल्लक से चुराए पैसे

फिल्में देखीं कैसे कैसे

टीचर की नकल, उनके नाम

और पता नहीं क्या क्या

अब सब तो बताया नहीं जा सकता।

यूं ही

खुलता है मन का कोना कोना।

बांटती हूं सब अपने ही साथ।

जिन्हें किसी से बांटने के लिए तरसता था मन

अपना ही हाथ पकड़कर आगे बढ़ जाती हूं

नये सिरे से।

यूं ही डरती थी, सहमी थी।

अब जानी हूं

ज़िन्दगी को पहचानी हूं।

जीवन कोई विवाद नहीं

जीवन में डर का भाव

कभी-कभी ज़रूरी  होता है,

शेर के पिंजरे के आगे

शान दिखाना तो ठीक है,

किन्तु खुले शेर को ललकारना

पता नहीं क्या होता है!

 

जीवन में दो कदम

पीछे लेना

सदा डर नहीं होता।

 

 

जीवन कोई विवाद नहीं

कि हम हर बात का मुद्दा बनाएं,

कभी-कभी उलझने से

बेहतर होता है

पीछे हट जाना,

चाहे कोई हमें डरपोक बताए।

 

जीवन कोई तर्क भी नहीं

कि हम सदा

वाद-विवाद में उलझे रहें

और जीवन

वितण्डावाद बनकर रह जाये।

 

शत्रु से बचकर मैदान छोड़ना

सदा डर नहीं होता,

जान बचाकर भागना

सदा कायरता नहीं होती,

नयी सोच के लिए,

राहें उन्मुक्त करने के लिए,

बचाना पड़ता है जीवन,

छोड़नी पड़ती हैं राहें,

किसी अपने के लिए,

किसी सपने के लिए,

किन्हीं चाहतों के लिए।

फिर आप इसे डर समझें,

या कायरता

आपकी समझ।

हमें भी मुस्‍काराना आ गया

फूलों को खिलते देख हमें भी मुस्‍काराना आ गया

गरजते बादलों को सुन हमें भी जताना आ गया

बहती नदी की धार ने सिखाया हमें चलते जाना

उंचे पर्वतों को देख हमें भी पांव जमाना आ गया

 

 

डर ज़िन्दगी से नहीं लगता

डर ज़िन्दगी से नहीं लगता

ज़िन्दगी जीने के

तरीके से लगता है।

 

एहसास मिटने लगे हैं

रिश्ते बिखरने लगे हैं

कौन अपना,

कौन पराया,

समझ से बाहर होने लगे हैं।

सड़कों पर खून बहता है

हाथ फिर भी साफ़ दिखने लगे हैं।

कहने को हम हाथ जोड़ते हैं,

पर कहां खुलते हैं,

कहां बांटते हैं,

कहां हाथ साफ़ करते हैं,

अनजाने से रहने लगे हैं।

क्या खोया , क्या पाया

इसी असमंजस में रहने लगे हैं।

पत्थरों को चिनने के लिए

अरबों-खरबों लुटाने के लिए

तैयार बैठे हैं,

पर भीतर जाने से कतराने लगे हैं।

पिछले रास्ते से प्रवेश कर,

ईश्वर में आस्था जताने लगे हैं।

प्रसाद की भी

कीमत लगती है आजकल

हम तो, यूं ही

आपका स्वाद

कड़वा करने में लगे हैं।

नदिया की धार के सँग

चल आज नदिया की धार के सँग तन मन सँवारकर देखें

राहों में आते कंकड़- पत्थरों से घर आँगन सँवारकर देखें

कभी गहराती, कभी धीमी, कभी भागती, कभी बिखरती

चल आज नदिया की लय पर अपना जीवन सँवारकर देखें।

 

सरस-सरस लगती है ज़िन्दगी।

जल सी भीगी-भीगी है ज़िन्दगी।

कहीं सरल, कहीं धीमे-धीमे

आगे बढ़ती है ज़िन्दगी।

तरल-तरल भाव सी

बहकती है ज़िन्दगी।

राहों में धार-सी बहती है ज़िन्दगी।

चलें हिल-मिल

कितनी सुहावनी लगती है ज़िन्दगी।

किसी और से क्या लेना, 

जब आप हैं हमारे साथ ज़िन्दगी।

आज भीग ले अन्तर्मन,

कदम-दर-कदम

मिलाकर चलना सिखाती है ज़िन्दगी।

राहें सूनी हैं तो क्या,

तुम साथ हो

तब सरस-सरस लगती है ज़िन्दगी।

आगे बढ़ते रहें

तो आप ही खुलने लगती हैं मंजिलें ज़िन्दगी।

कुछ कह रही ओस की बूंदे

रंग-बिरंगी आभाओं से सजकर रवि हुआ उदित

चिड़ियां चहकीं, फूल खिले, पल्लव हुए मुदित

देखो भाग-भागकर कुछ कह रही ओस की बूंदे

इस मधुर भाव में मन क्यों न हो जाये प्रफुल्लित

अपनी हिम्मत से जीते हैं

बस एक दृढ़ निश्चय हो तो राहें उन्मुक्त हो ही जाती हैं
लक्ष्य पर दृष्टि हो तो बाधाएं स्वयं ही हट जाती हैं
कौन रोक पाता है उन्हें जो अपनी हिम्मत से जीते हैं
प्रयास करते रहने वालों को मंज़िल मिल ही जाती है

बहके हैं रंग

रंगों की आहट से खिली खिली है जिन्दगी

अपनों की चाहत से मिली मिली है जिन्दगी

बहके हैं रंग, चहके हैं रंग, महके हैं रंग,

 रंगों की रंगीनियों से हंसी हंसी है जिन्दगी

जीवन में सदैव अमावस नहीं होता

जैसे इन्द्रधनुषी रंगों में स्याह रंग नहीं होता              

वैसे जीवन में सदैव अमावस ही नहीं होता
रिमझिम बूंदों को जब गुनगुनी धूप निखारती है
आशा के पुष्पों पर कभी तुषारापात नहीं होता। 

दौड़ बनकर रह गई है जिन्दगी

शून्य से शतक तक की दौड़ बनकर रह गई है जिन्दगी

इससे आगे और क्या इस सोच में बह रही है जिन्दगी

औरऔर  मिलने की चाह में डर डर कर जीते हैं हम

एक से निन्यानवे तक भी आनन्द ले, कह रही है जिन्दगी

है हौंसला बुलन्द

उन राहों पर निकले हैं जिनका आदि न कोई अन्त

न आगे है कोई न पीछे है, दिखता दूर कहीं दिगन्त

देखने में रंगीनियां हैं, सफ़र है, समां सुहाना लगता है

टेढ़ी-मेढ़ी राहें हैं, पथ दुर्गम है, पर है हौंसला बुलन्द

कांटों की बात जीवन भर साथ

रूप, रस, गंध, भाव, एहसास, कांटों में भी होते है
नज़र नज़र की बात है सबको कहां दिखाई देते है
कांटों की चुभन की ही बात क्यों करते हैं सदा हम
संजोकर देखना इन्हें, जीवन भर अक्षुण्ण साथ देते है