हां हुआ था भारत आज़ाद

कभी लगा ही नहीं

कि हमें आज़ाद हुए इतने वर्ष हो गये।

लगता है अभी कल ही की तो बात है।

हमारे हाथों में सौंप गये थे

एक आज़ाद भारत

कुछ आज़ादी के दीवाने, परवाने।

फ़ांसी चढ़े, शहीद हुए।

और न जाने क्या क्या सहन किया था

उन लोगों ने जो हम जानते ही नहीं।

जानते हैं तो बस एक आधा अधूरा सच

जो हमने पढ़ा है पुस्तकों में।

और ये सब भी याद आता है हमें

बस साल के गिने चुने चार दिन।

हां हुआ था भारत आज़ाद।

कुछ लोगों की दीवानगी, बलिदान और हिम्मत से।

 

और हम ! क्या कर रहे हैं हम ?

कैसे सहेज रहे हैं आज़ादी के इस उपहार को।

हम जानते ही नहीं

कि मिली हुई आजादी का अर्थ क्या होता है।

कैसे सम्हाला, सहेजा जाता है इसे।

दुश्मन आज भी हैं देश के

जिन्हें मारने की बजाय

पाल पोस रहे हैं हम उन्हें अपने ही भीतर।

झूठ, अन्नाय के विरूद्ध

एक छोटी सी आवाज़ उठाने से तो डरते हैं हम।

और आज़ादी के दीवानों की बात करते हैं।

बड़ी बात यह

कि आज देश के दुश्मनों के विरूद्ध खड़े होने के लिए

हमें पहले अपने विरूद्ध हथियार उठाने पड़ेंगे।

शायद इसलिए

अधिकार नहीं है हमें

शहीदों को नमन का

नहीं है अधिकार हमें तिरंगे को सलामी का

नहीं है अधिकार

किसी और पर उंगली उठाने का।

पहले अपने आप को तो पहचान लें

देश के दुश्मनों को अपने भीतर तो मार लें

फिर साथ साथ चलेंगे

न्याय, सत्य, त्याग की राह पर

शहीदों को नमन करेंगे

और तिरंगा फहरायेंगे अपनी धरती पर

और अपने भीतर।