अपने-आपसे करते हैं  हम फ़रेब

अपने-आपसे करते हैं

हम फ़रेब

जब झूठ का

पर्दाफ़ाश नहीं करते।

किसी के धोखे को

सहन कर जाते हैं,

जब हँसकर

सह लेते हैं

किसी के अपशब्द।

हमारी सच्चाई

ईमानदारी का

जब कोई अपमान करता है

और हम

मन मसोसकर

रह जाते हैं

कोई प्रतिवाद नहीं करते।

हमारी राहों में

जब कोई कंकड़ बिछाता है

हम

अपनी ही भूल समझकर

चले रहते हैं

रक्त-रंजित।

औरों के फ़रेब पर

तालियाँ पीटते हैं

और अपने नाम पर

शर्मिंदा होते हैं।