जीवन की आपा-धापी में

सालों बाद, बस यूँ ही

पुस्तकों की आलमारी

खोल बैठी।

पन्ना-पन्ना मेरे हाथ आया,

घबराकर मैंने हाथ बढ़ाया,

बहुत प्रयास किया मैंने

पर बिखरे पन्नों को

नहीं समेट पाई,

देखा,

पुस्तकों के नाम बदल गये

आकार बदल गये

भाव बदल गये।

जीवन की आपा-धापी में

संवाद बदल गये।

प्रारम्भ और अन्त

उलझ गये।