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More Articles
मैं भी तो
यहां
हर आदमी की ज़ुबान
एक धारदार छुरी है
जब चाहे, जहां चाहे,
छीलने लगती है
कभी कुरेदने तो कभी काटने।
देखने में तुम्हें लगेगी
एकदम अपनी सी।
विनम्र, झुकती, लचीली
तुम्हारे पक्ष में।
लेकिन तुम देर से समझ पाते हो
कि सांप की गति भी
कुछ इसी तरह की होती है।
उसकी फुंकार भी
आकर्षित करती है तुम्हें
किसी मौके पर।
उसका रंग रूप, उसका नृत्य _
बीन की धुन पर उसका झूमना
तुम्हें मोहने लगता है।
तुम उसे दूध पिलाने लगते हो
तो कभी देवता समझ कर
उसकी पूजा करते हो।
यह जानते हुए भी
कि मौका मिलते ही
वह तुम्हें काट डालेगा।
और तुम भी
सांप पाल लेते हो
अपनी पिटारी में।
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आँख मूंद सपनों में जीने लगती हूँ
खिड़की से सूनी राहों को तकती हूँ
उन राहों पर मन ही मन चलती हूँ
भटकन है, ठहराव है, झंझावात हैं
आँख मूंद सपनों में जीने लगती हूँ।
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समझा रहे हैं राजाजी
वीरता दिखा रहे मंच पर आज राजाजी
हाथ उठा अपना ही गुणगान कर रहे हैं राजाजी
धर्म-कर्म, जाति-पाति के नाम पर ‘मत’ देना
बस इतना ही तो समझा रहे हैं राजाजी।
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असली-नकली की पहचान कहाँ
पीतल में सोने से ज़्यादा चमक आने लगी है
सत्य पर छल-कपट की परत चढ़ने लगी है
असली-नकली की पहचान कहाँ रह गई अब
बस जोड़-तोड़ से अब ज़िन्दगी चलने लगी है।
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भ्रष्टाचार पर चर्चा
जब हम भ्रष्टाचार की बात करते हैं और दूसरे की ओर अंगुली उठाते हैं तो चार अंगुलियाँ स्वयंमेव ही अपनी ओर उठती हैं जिन्हें हम स्वयं ही नहीं देखते। यह पुरानी कहावत है।
वास्तव में हम सब भ्रष्टाचारी हैं। बात बस इतनी है कि जिसकी जितनी औकात है उतना वह भ्रष्टाचार कर लेता है। किसी की औकात 100 रुपये की है तो किसी की 100 करोड़ की। किन्तु 100 रुपये वाला स्वयं को ईमानदार कहता है। हम मंहगाई की बात करते हैं किन्तु सुविधाभेागी हो गये हैं। बिना कष्ट उठाये धन से हर कार्य करवा लेना चाहते हैं। हमें दूसरे का भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार लगता है और अपना आवश्यकता, विवशता।
यदि हम अपनी ओर उठने वाली चार अंगुलियों के प्रश्न और उत्तर दे सकें तो शायद हम भ्रष्टाचार के विरूद्ध अपना योगदान दे सकते हैं:
पहली अंगुली मुझसे पूछती है: क्या मैं विश्वास से कह सकती हूँ कि मैं भ्रष्टाचारी नहीं हूँ ।
दूसरी अंगुली कहती है: अगर मैं भ्रष्टाचारी नहीं हूं तो क्या भ्रष्टाचार का विरोध करती हूँ ?
तीसरी अंगुली कहती है: कि अगर मैं भ्रष्टाचारी नहीं हूं किन्तु भ्रष्टाचार का विरोध नहीं करती तो मैं उनसे भी बड़े भ्रष्टाचारी हूँ ।
और अंत में चौथी अंगुली कहती है: अगर मैं भी भ्रष्टाचारी हूं तो सामने की अंगुली को भी अपनी ओर मोड़ लेना चाहिए और मुक्का बनाकर अपने पर वार करना चाहिए। दूसरों को दोष देने और सुधारने से पहले पहला कदम अपने प्रति उठाना होगा।
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मन टटोलता है प्रस्तर का अंतस
प्रस्तर के अंतस में
सुप्त हैं न जाने कितने जल प्रपात।
कल कल करती नदियां,
झर झर करते झरने,
लहराती बलखाती नहरें,
मन की बहारें, और कितने ही सपने।
जहां अंकुरित होते हैं
नव पुष्प,
पुष्पित पल्लवित होती हैं कामनाएं
जिंदगी महकती है, गाती है,
गुनगुनाती है, कुछ समझाती है।
इन्द्रधनुषी रंगों से
आकाश सराबोर होता है
और मन टटोलता है
प्रस्तर का अंतस।
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धन्यवाद देते रहना हमें Keep Thanking
आकाश को थाम कर खड़े हैं नहीं तो न जाने कब का गिर गया होता
पग हैं धरा पर अड़ाये, नहीं तो न जाने कब का भूकम्प आ गया होता
धन्यवाद देते रहना हमें, बहुत ध्यान रखते हैं हम आप सबका सदैव ही
पानी पीते हैं, नहा-धो लेते हैं नहीं तो न जाने कब का सुनामी आ गया होता।
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जो मिला बस उसे संवार
कहते हैं जीवन छोटा है, कठिनाईयां भी हैं और दुश्वारियां भी
किसका संग मिला, कौन साथ चला, किसने निभाई यारियां भी
आते-जाते सब हैं, पर यादों में तो कुछ ही लोग बसा करते हैं
जो मिला बस उसे संवार, फिर देख जीवन में हैं किलकारियां भी
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हादसा
यह रचना मैंने उस समय लिखी थी जब 1987 में चौधरी चरण सिंह की मृत्यु हुई थी और उसी समय लालडू में दो बसों से उतारकर 43 और 47 सिखों को मौत के घाट उतार दिया था।)
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भूचाल, बाढ़, सूखा।
सामूहिक हत्याएं, साम्प्रदायिक दंगे।
दुर्घटनाएं और दुर्घटनाएं।
लाखों लोग दब गये, बह गये, मर गये।
बचे घायल, बेघर।
प्रशासन निर्दोष। प्राकृतिक प्रकोप।
खानदानी शत्रुता। शरारती तत्व।
विदेशी हाथ।
सरकार का कर्त्तव्य
आंकड़े और न्यायिक जांच।
पदयात्राएं, आयोग और सुझाव।
चोट और मौत के अनुसार राहत।
विपक्षी दल
बन्द का आह्वान।
फिर दंगे, फिर मौत।
सवा सौ करोड़ में
ऐसी रोज़मर्रा की घटनाएं
हादसा नहीं हुआ करतीं।
हादसा तब हुआ
जब एक नब्बे वर्षीय युवा,
राजनीति में सक्रिय
स्वतन्त्रता सेनानी
सच्चा देशभक्त
सर्वगुण सम्पन्न चरित्र
असमय, बेमौत चल बसा
अस्पताल में
दस वर्षों की लम्बी प्रतीक्षा के बाद।
हादसा ! बस उसी दिन हुआ।
देश शोक संतप्त।
देश का एक कर्णधार कम हुआ।
हादसे का दर्द
बड़ा गहरा है
देश के दिल में।
क्षतिपूर्ति असम्भव।
और दवा -
सरकारी अवकाश,
राजकीय शोक, झुके झण्डे
घाट और समाधियां,
गीता, रामायण, बाईबल, कुरान, ग्रंथ साहिब
सब आकाशवाणी और दूरदर्शन पर।
अब हर वर्ष
इस हादसे का दर्द बोलेगा
देश के दिल में
नारों, भाषणों, श्रद्धांजलियों
और शोक संदेशों के साथ।
ईश्वर उनकी दिवंगत आत्मा को
शांति देना।
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दाना डाला जाल बिछाया
नदी किनारे बैठे बैठे मन में आया चल डूब मरें
फिर देखा मीन बड़ी बड़ी, सोचा मस्ती खूब करें
दाना डाला, जाल बिछाया, सारे हथकंडे अपनाये
पकड़ी तो नकली निकली, आप न ऐसी भूल करें